vishvguru banne se pahle

विश्व सेवा संघ, संवाद सूत्र

प्रयागराज। बुद्ध, ईसा मसीह, पैगंबर मोहम्मद और कार्ल मार्क्स जैसे महापुरुषों ने अपने विचारों से न केवल अपने समय को, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी दिशा दी है। बौद्ध धर्म आज विश्व के 150 से अधिक देशों में 52 करोड़ से अधिक अनुयायियों के साथ प्रभावी है। भारत की इस महान विरासत के होते हुए भी “विश्व गुरु” की संकल्पना तभी सार्थक हो सकती है, जब हम शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक समरसता के मोर्चे पर खुद को मज़बूत बनाएं।

शिक्षा की चुनौतियाँ:
देश की साक्षरता दर बढ़ी है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अब भी भारी कमी है। ग्रामीण भारत में विद्यालयों की स्थिति दयनीय है। शिक्षकों की भारी कमी, संसाधनों का अभाव और डिजिटल डिवाइड, बच्चों को शिक्षा से दूर कर रहे हैं। बुद्ध ने तर्क और विवेकपूर्ण शिक्षा पर जोर दिया था, हमें भी उसी राह पर चलना होगा।

स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त:
भारत का स्वास्थ्य बजट जीडीपी का महज़ 1% है। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति और भी खराब है। जबकि बुद्ध ने मानसिक संतुलन और दुखों के निवारण को जीवन का आधार माना। हमें व्यापक और समावेशी स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता है।

रोजगार और आर्थिक असमानता:
आज भी भारत की 86% आबादी असंगठित क्षेत्र में है। आर्थिक असमानता इतनी गहरी है कि देश की 40% संपत्ति मात्र 1% लोगों के पास है। कौशल विकास, स्टार्टअप्स और MSMEs को बढ़ावा देकर हम समावेशी विकास की ओर बढ़ सकते हैं।

सामाजिक समरसता – समय की मांग:
जाति, धर्म, वर्ग के नाम पर विभाजन समाज को कमजोर कर रहा है। समरसता, करुणा और अहिंसा को जीवन में उतारना ही बुद्ध के दर्शन का सच्चा अनुसरण है।

भारत की वैश्विक भूमिका:
जलवायु संकट, वैश्विक स्वास्थ्य और शांति अभियानों में भारत अगर बुद्ध की करुणा और अहिंसा से प्रेरित होकर अग्रणी भूमिका निभाए, तो विश्व गुरु बनने की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।

भारत को सिर्फ “विश्व गुरु” का नारा नहीं चाहिए, बल्कि उसके अनुरूप व्यवस्था, नीति और समर्पण भी चाहिए। जब भारत अपने नागरिकों को शिक्षित, स्वस्थ, समान अवसरों से युक्त और सामाजिक रूप से एकजुट करेगा – तभी वह सचमुच विश्व को राह दिखा सकेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *