विष्णु सक्सेना के गीत


तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको
इससे पहले कि कोई और बहा ले मुझको
आईना बन के गुज़ारी है ज़िंदगी मैंने 
टूट जाऊंगा बिखरने से बचा ले मुझको

प्यास बुझ जाए तो शबनम ख़रीद सकता हूं
ज़ख़्म मिल जाएं तो मरहम ख़रीद सकता हूं
ये मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया
मगर तुम्हारा हर एक ग़म ख़रीद सकता हूं

जब भी कहते हो आप हमसे कि अब चलते हैं
हमारी आंख से आंसू नहीं संभलते हैं
अब न कहना कि संग दिल कभी नहीं रोते
जितने दरिया हैं पहाड़ों से ही निकलते हैं

तू जो ख़्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे
ग़म के मरुथल में भी बरसात का रेला कर दे
याद वो है ही नहीं आए जो तन्हाई में
तेरी याद आए तो मेले में अकेला कर दे

सोचता था कि मैं तुम गिर के संभल जाओगे
रौशनी बन के अंधेरों का निगल जाओगे
न तो मौसम थे न हालात न तारीख़ न दिन
किसे पता थी कि तुम ऐसे बदल जाओगे

जो आज कर गयी घायल वो हवा कौन सी है
जो दर्दे दिल करे सही वो दवा कौन सी है
तुमने इस दिल को गिरफ़्तार आज कर तो लिया
अब ज़रा ये तो बता दो दफ़ा कौन सी हैहमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैंहमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं
रातें सुलग रही हैं दिन भी दहक रहे हैं

जब से है तुमको देखा हम इतना जानते हैं
तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे हैं

बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई हैं ज़ुल्फ़ें और हम उलझ रहे हैं

मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कली से 
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं

अब भी हसीन सपने आंखों में पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आंसू निकल रहे हैं

नींदें कहां से आएं इस दर पे करवटें हैं
वहां तुम बदल रहे हो यहां हम बदल रहे हैं

डाली से रूठ कर के जिस दिन कली गयी थी
बस उस ही दिन से अपनी क़िस्मत छली गयी थी

अंतिम मिलन समझ कर उसे देखने गया तो
था प्लेटफ़ॉर्म खाली गाड़ी चली गयी थी

By Reporter

"चाटुकारिता नहीं पत्रकारिता ✍️✍️"

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