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सिद्धार्थनगर। जनता को पारदर्शी और उत्तरदायी शासन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लागू सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) में प्राप्त सूचना समय विवादों में घिर गया। जनपद सिद्धार्थनगर के एक जागरूक नागरिक ने एक अत्यंत गंभीर मामला उजागर किया। ग्राम रोडिनिहवा, ब्लॉक बढ़नी निवासी अखिलेश कुमार पाण्डेय ने पंचायती राज विभाग, सिद्धार्थनगर के अधिकारियों पर फर्जीवाड़े और जनहित की सूचना में धोखाधड़ी का गंभीर आरोप लगाया है। पंचायती राज विभाग में फर्जी सूचना

विश्व सेवा संघ, संवाद सूत्र

प्राप्त जानकारी के अनुसार, दिनांक 26 अप्रैल 2025 को श्री पाण्डेय द्वारा RTI के तहत एक सूचना मांगी गई थी, जो कि संविदाकर्मी/आउटसोर्सिंग कर्मचारियों से संबंधित थी। यह सूचना जिला पंचायत राज अधिकारी कार्यालय से प्राप्त हुई, जिसमें कुल तीन बिंदुओं पर जानकारी दी गई थी। परंतु जब उस सूचना में दिए गए हस्ताक्षर और दस्तावेजों की प्रामाणिकता को लेकर जांच की गई, तो हैरान करने वाली बातें सामने आईं।

शिकायतकर्ता के अनुसार, सूचना पत्र पर जिला पंचायत राज अधिकारी के हस्ताक्षर दर्ज थे, लेकिन जब उस दस्तावेज की सत्यता की जांच जिलाधिकारी कार्यालय में कराई गई, तो पता चला कि हस्ताक्षर फर्जी हैं। अर्थात, सूचना की प्रति न केवल झूठी थी, बल्कि उसमें शामिल हस्ताक्षर भी असली अधिकारी के नहीं थे। यह स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और जनता को भ्रमित करने का मामला बनता है।

अखलेश पाण्डेय का आरोप है कि पंचायत राज अधिकारी द्वारा न केवल फर्जी हस्ताक्षर किए गए, बल्कि सूचना में “SBM” नामक योजना को एक पद के रूप में दर्शाया गया। जबकि हकीकत यह है कि SBM (Swachh Bharat Mission) एक सरकारी योजना है, न कि कोई पदनाम। पंचायत राज विभाग में DPC (District Project Coordinator) जैसे पद होते हैं, लेकिन SBM नाम का कोई पद नहीं होता। यह एक प्रकार से सरकारी योजनाओं की गरिमा के साथ खिलवाड़ और जनता को भ्रमित करने का प्रयास है।

इस पूरे मामले में कार्यालय में कार्यरत एक कर्मचारी अमित श्रीवास्तव का नाम भी सामने आया है, जिनके संबंध में कहा गया है कि वे केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने आते हैं और नियमित रूप से कार्यालय में उपस्थित नहीं रहते। यदि यह कथन सही है तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की गंभीर विफलता का संकेत देता है। एक सरकारी कर्मचारी का कार्यालय में अनुपस्थित रहकर केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना न केवल अनैतिक है, बल्कि नियमों का स्पष्ट उल्लंघन भी है।

शिकायतकर्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि सूचना का उत्तर देने के लिए जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए, वे किसी अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं हैं। इसके साथ ही, सूचना के उत्तर में ऐसा कुछ भी नहीं था जो वास्तविकता को दर्शाए। इस प्रकार की कार्यप्रणाली से न केवल सूचना अधिकार अधिनियम की भावना को ठेस पहुंचती है, बल्कि आमजन का प्रशासन पर से विश्वास भी डगमगाता है।

इस प्रकार की गंभीर अनियमितता भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आती है। विशेष रूप से IPC की धाराएं 166 (लोक सेवक द्वारा विधि विरुद्ध कार्य करना), 166A, 188 (लोक सेवक के आदेश की अवहेलना), 188A, 318 (भ्रामक सूचना देना) और 319 (झूठे दस्तावेज़ बनाना) इस मामले में सीधे तौर पर लागू होती हैं। शिकायतकर्ता ने इन धाराओं के अंतर्गत संबंधित अधिकारियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है।

इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी के कार्यालय से यदि फर्जी सूचना जारी होती है और उस पर फर्जी हस्ताक्षर होते हैं, तो यह व्यवस्था में गहरी सेंध का संकेत है। सूचना का अधिकार अधिनियम आमजन को सरकार की कार्यप्रणाली पर नजर रखने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का साधन है। यदि इस अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाली जानकारी ही फर्जी हो, तो फिर जनता कहां जाएगी?

जनपद सिद्धार्थनगर जैसे सीमावर्ती जिले में जहां पहले से ही सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कई बार लापरवाही और भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आती रही हैं, इस प्रकार की घटनाएं आमजन में असंतोष और अविश्वास को और बढ़ावा देती हैं। सरकार और संबंधित विभागों को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी या कर्मचारी ऐसी लापरवाही या धोखाधड़ी करने का साहस न कर सके।

अखिलेश कुमार पाण्डेय ने पंचायती राज निदेशक, उत्तर प्रदेश एवं जन सूचना अधिकारी लखनऊ से इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने एवं दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही किए जाने की मांग की है। उन्होंने यह भी आग्रह किया है कि इस प्रकार की घटनाओं को रोकने हेतु राज्य स्तर पर निगरानी प्रणाली को और सशक्त किया जाए।

इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि समय रहते प्रशासनिक लापरवाही और जालसाजी जैसे मामलों पर अंकुश न लगाया गया, तो न केवल शासन की साख प्रभावित होगी, बल्कि जनता का विश्वास भी बुरी तरह टूटेगा।

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