CM yogi ka Farman Bhumafiyan honge chinhit

भारत एक युवा देश होने के साथ-साथ तेजी से उम्रदराज होती जनसंख्या का भी गवाह बन रहा है। ग्रामीण भारत में लाखों बुज़ुर्ग, दिव्यांग और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोग आज भी दो वक़्त की रोटी और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने हाल ही में इन वर्गों के लिए एक संशोधित सामाजिक सहायता योजना लागू की है, जिसका उद्देश्य उन्हें वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा देना है। लेकिन ज़मीन पर हालात क्या हैं? क्या यह योजना वास्तव में उन लोगों तक पहुंच रही है जिनके लिए इसे बनाया गया है? क्या यह सहायता उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है? आइए जानते हैं—

केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई यह योजना “राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)” के अंतर्गत आती है। योजना के अनुसार:वृद्धावस्था पेंशन: 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को ₹1000 प्रतिमाह पेंशनदिव्यांग सहायता: असमर्थ या शारीरिक रूप से अयोग्य नागरिकों को ₹1200 प्रतिमाहबीमार एवं निर्धन नागरिक: गंभीर बीमारी से पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को ₹1500 प्रतिमाह तक की सहायतासाथ ही कुछ क्षेत्रों में वृद्धाश्रमों के लिए फंडिंग और मोबाइल हेल्थ यूनिट्स की भी व्यवस्था की जा रही है। सरकार का कहना है कि यह योजना सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम कदम है।

वास्तविकता यह है कि बड़ी संख्या में पात्र लाभार्थी या तो इस योजना से वंचित हैं या फिर उन्हें यह सहायता अनियमित रूप से मिल रही है। देश के कई राज्यों से रिपोर्ट मिली हैं कि बुज़ुर्गों को महीनों तक पेंशन नहीं मिलती, और जब मिलती है तो बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं।

RAMNARESH (65 वर्ष ) कहते हैं:

“₹1000 में क्या होता है बेटा? दवा, चश्मा, दूध – सब महंगा है। बेटे को रोज़ फोन करता हूँ, पर वह खुद बेरोज़गार है।”

KABOOTRA (62 वर्ष, ) बताती हैं:

“फॉर्म भरने के लिए भी दलाल ₹200 मांगते हैं। गांव में कोई नहीं बताता कि पैसा कब आएगा।”

MANIHAR YADAV कहते हैं:

“मेरे पास आधार और राशन कार्ड है, फिर भी नाम नहीं आया सूची में। पंचायत सचिव टालमटोल करता है।”

भारत में लगभग 12 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं।इनमें से केवल 3.5 करोड़ को ही नियमित पेंशन मिलती है।75% से अधिक लाभार्थी ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जहाँ बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है।

नीति विशेषज्ञों का मानना है कि योजना का उद्देश्य बहुत अच्छा है, लेकिन इसे लागू करने की पद्धति कमजोर है। अगर सरकार सचमुच बुज़ुर्गों और बीमारों को गरिमा के साथ जीवन देना चाहती है, तो उसे नीतियों को ज़मीनी स्तर पर सशक्त बनाना होगा।

DEENANATH (SAMAJSEVI)

“₹1000-₹1500 प्रतिमाह एक तरह का सांत्वना भत्ता है, न कि सामाजिक सुरक्षा। इसे कम से कम ₹3000 किया जाना चाहिए और मेडिकल हेल्प अलग से मिलनी चाहिए।”

  1. पेंशन राशि में वृद्धि: ₹1000 बहुत कम है; इसे महंगाई के अनुरूप बढ़ाया जाए।
  2. ऑफलाइन-ऑनलाइन दोनों माध्यम: केवल डिजिटल आवेदन से नहीं चलेगा, गांवों में हेल्प डेस्क हों।
  3. NGO की भागीदारी: सामाजिक संगठनों को जोड़ा जाए ताकि लाभार्थियों की पहचान और सहायता हो सके।
  4. पारदर्शिता: लाभार्थियों को SMS/फोन के ज़रिए सूचना मिले कि पैसा कब आया।
  5. स्वास्थ्य योजना लिंक: इस योजना को आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य योजनाओं से जोड़ा जाए।

क्या आपको या आपके परिवार में किसी को इस योजना का लाभ मिला है?
क्या यह सहायता पर्याप्त है?
अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

वृद्धावस्था, बीमारी और अयोग्यता ऐसी स्थितियाँ हैं जो किसी भी इंसान को निर्भर बना देती हैं। ऐसे में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इन नागरिकों को आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन देने का प्रयास करे।
यह योजना एक प्रयास जरूर है, लेकिन जब तक यह सिर्फ कागज़ पर रहेगी, तब तक इसका कोई महत्व नहीं होगा। ज़रूरत है गंभीरता से लागू करने की — ताकि कोई रामदीन या सरिता देवी अगली सुबह बिना दवा और भूखे पेट न सोए।

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