लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। राज्य सरकार ने 2026 में होने वाले पंचायत चुनावों की तैयारियों के तहत ग्राम पंचायतों और राजस्व ग्रामों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को गति देने का निर्णय लिया है। इसके लिए शासन ने एक विस्तृत शासनादेश जारी कर दिया है, जिसके माध्यम से जिलों को निर्देशित किया गया है कि वे 5 जून तक पुनर्गठन के प्रस्ताव भेजें। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026
विश्व सेवा संघ, संवाददाता
शासनादेश के अनुसार, पिछले पंचायत चुनाव 2021 के बाद कई गांवों को नगरीय क्षेत्रों में शामिल कर लिया गया, जिससे ग्राम पंचायतों की स्थिति में परिवर्तन आया है। कई ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जिनकी जनसंख्या घटकर 1000 से कम रह गई है, जो पंचायत गठन के मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। ऐसे में अब इनका पुनर्गठन किया जाएगा।
ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन क्यों ज़रूरी है?
उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम के अनुसार, ग्राम पंचायत बनाने के लिए कम से कम 1000 की जनसंख्या आवश्यक होती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में गांव नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद, या नगर निगम में शामिल हो चुके हैं। इस कारण कई ग्राम पंचायतों का अस्तित्व संकट में आ गया है। कई पंचायतों में केवल एक या दो राजस्व ग्राम ही शेष बचे हैं। ऐसे मामलों में पुनर्गठन करके इन्हें अन्य समीपवर्ती पंचायतों में शामिल किया जाएगा।
शासन ने कहा है कि यदि किसी ग्राम पंचायत का कोई एक राजस्व ग्राम नगर निकाय में चला गया है और शेष ग्राम पंचायत गठन के योग्य नहीं है, तो उसे पास की ग्राम पंचायत में विलय किया जाएगा। वहीं यदि कोई शेष राजस्व ग्राम मानकों को पूरा करता है तो उसे स्वतंत्र ग्राम पंचायत घोषित किया जाएगा।
चार सदस्यीय समिति करेगी पुनर्गठन का अध्ययन
प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित की गई है, जिसमें मुख्य विकास अधिकारी, जिला पंचायत राज अधिकारी और अपर मुख्य अधिकारी शामिल होंगे। यह समिति पुनर्गठन से जुड़े प्रस्तावों की समीक्षा कर शासन को भेजेगी। समिति यह भी सुनिश्चित करेगी कि नगरीय निकायों के सृजन या विस्तार से जिन विकास खंडों की अधिसूचना प्रभावित हुई है, उनकी अद्यतन अधिसूचना उपलब्ध हो।
आरक्षण प्रक्रिया में बाधा बन सकता है पुनर्गठन
ग्राम पंचायतों के परिसीमन और पुनर्गठन का सीधा असर आरक्षण प्रक्रिया पर भी पड़ेगा। पंचायत चुनाव से पहले पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण तय करने की प्रक्रिया की जाती है। इसके लिए श्रेणीवार जनसंख्या के आंकड़े एकत्र करने होते हैं। यदि ग्राम पंचायतों की सीमा बदलती है, तो इन आंकड़ों में भी परिवर्तन करना होगा। यही कारण है कि राज्य सरकार चाहती है कि यह कार्य समय रहते पूरा हो, ताकि चुनाव समय पर कराए जा सकें।
पंचायत चुनाव तक शहरी निकायों के सृजन पर रोक
शासन ने स्पष्ट कर दिया है कि अब पंचायत चुनाव तक किसी भी नगर पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम का नया सृजन नहीं किया जाएगा और न ही सीमा विस्तार की अनुमति दी जाएगी। इस आशय का एक पत्र प्रमुख सचिव पंचायती राज अनिल कुमार द्वारा नगर विकास विभाग को भेजा गया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया है ताकि मतदाता सूची के पुनरीक्षण और परिसीमन की प्रक्रिया बाधित न हो।
चुनाव की संभावित तिथियाँ और कार्यकाल
राज्य में ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों का कार्यकाल क्रमशः 26 मई, 19 जुलाई और 11 जुलाई 2026 को समाप्त हो रहा है। इस कारण त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल–मई 2026 में कराए जाने की संभावना है। इससे पहले मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण और आरक्षण की प्रक्रिया पूरी की जानी है, जिसमें छह महीने तक का समय लग सकता है।
ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन के संभावित लाभ
पुनर्गठन की इस प्रक्रिया से कई लाभ होंगे:
प्रशासनिक स्पष्टता: सीमाओं का निर्धारण स्पष्ट होगा, जिससे विकास योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावी होगा।
समुचित प्रतिनिधित्व: जनसंख्या के अनुसार पंचायतों का निर्माण होने से सभी वर्गों को न्यायसंगत प्रतिनिधित्व मिलेगा।
चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता: परिसीमन और आरक्षण के स्पष्ट नियमों से चुनाव निष्पक्ष होंगे।
राजनीतिक हलचल और संभावित समीकरण
जैसे-जैसे पंचायत चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, राजनीतिक दलों ने भी अपनी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। सत्ताधारी दल जहां सरकार की योजनाओं और ग्रामीण विकास को आधार बनाएगा, वहीं विपक्षी दल पंचायतों में भ्रष्टाचार, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं।
चुनाव आयोग की भूमिका भी अहम
हालांकि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा कराए जाते हैं, लेकिन मतदाता सूची, आरक्षण, और परिसीमन का सारा कार्य राज्य सरकार के अधीन होता है। ऐसे में चुनाव आयोग की ओर से भी जिलों को दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं कि वे सभी चुनाव संबंधी कार्यों की समयसीमा सुनिश्चित करें।
निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026 की तैयारियाँ तेज़ हो चुकी हैं। शासन ने समय से पहले सभी आवश्यक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं, ताकि चुनाव प्रक्रिया सुचारू रूप से सम्पन्न हो सके। ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन, परिसीमन, और आरक्षण जैसे कदम यह सुनिश्चित करेंगे कि चुनाव पारदर्शिता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हों। अब देखना यह होगा कि राजनीतिक दल इन पंचायत चुनावों को कैसे दिशा देते हैं और ग्रामीण जनता क्या रुख अपनाती है।