वेल्लोर (तमिलनाडु): तमिलनाडु के वेल्लोर जिले से वक्फ संपत्ति को लेकर एक गंभीर विवाद सामने आया है, जिसने राज्य की राजनीतिक और सामाजिक हलचल को और तेज कर दिया है। वेल्लोर के कट्टुकोल्लई गांव में रहने वाले लगभग 150 परिवारों को एक दरगाह द्वारा वक्फ जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया है। इन परिवारों पर आरोप है कि वे पिछले कई दशकों से इस जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करके रह रहे हैं। इस नोटिस के बाद गांव में तनाव और असमंजस की स्थिति बन गई है।
इस प्रकरण में नया मोड़ तब आया जब कांग्रेस विधायक हसन मौलाना ने ग्रामीणों के पक्ष में आकर यह भरोसा दिलाया कि किसी को भी जबरन बेदखल नहीं किया जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर वक्फ बोर्ड के पास जमीन से संबंधित कानूनी दस्तावेज़ मौजूद हैं, तो ग्रामीणों को कुछ किराया देना पड़ सकता है।
क्या है पूरा मामला?
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब गांव के लोगों को एफ. सैयद सथाम नामक व्यक्ति की ओर से नोटिस भेजे गए। सैयद सथाम 2021 में अपने पिता की मृत्यु के बाद दरगाह और मस्जिद के संरक्षक बने थे। उनका दावा है कि यह जमीन 1954 से वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और यह दरगाह के नाम रजिस्टर्ड है। उन्होंने कहा कि उनके पास जमीन से संबंधित सभी वैध दस्तावेज़ हैं, जो वक्फ बोर्ड में दर्ज हैं।
नोटिस में साफ-साफ लिखा गया है कि इस जमीन पर बने मकान और दुकानें अवैध हैं और यदि रहने वालों ने वक्फ नियमों के तहत अनुमति नहीं ली, किराया नहीं दिया और कब्जा नहीं छोड़ा, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई के तहत बेदखल कर दिया जाएगा।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया और विरोध
इस नोटिस के बाद गांव में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया। ग्रामीणों का कहना है कि वे चार पीढ़ियों से इस जमीन पर रह रहे हैं। उनके पास पंचायत टैक्स की रसीदें, घर बनाने की अनुमति और बिजली-पानी के कनेक्शन जैसे सरकारी दस्तावेज हैं, जो उनके दावे को मजबूत करते हैं।
उनका तर्क है कि जब सैयद सथाम के पिता, जो पूर्व संरक्षक थे, ने कभी किराया नहीं मांगा, तो अब अचानक ऐसा क्यों किया जा रहा है? ग्रामीणों ने इसे अपनी पुश्तैनी संपत्ति बताया और कहा कि वे किसी भी कीमत पर अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
इस बढ़ते तनाव के बीच हिंदू मुनानी संगठन के डिवीजनल सेक्रेटरी प्रवीण कुमार ने प्रशासन से मांग की है कि ग्रामीणों को “पट्टा” (भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र) दिया जाए ताकि उन्हें भविष्य की चिंता से राहत मिल सके।
वक्फ बोर्ड और संरक्षक का पक्ष
एफ. सैयद सथाम का कहना है कि उनके पिता अशिक्षित थे और उन्हें वक्फ बोर्ड की औपचारिकताओं की पूरी जानकारी नहीं थी। इसलिए उन्होंने ग्रामीणों से कभी किराया नहीं वसूला, लेकिन अब वह इस गलती को सुधारना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर लोग किराया देने को तैयार नहीं होते और नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें मजबूरन कोर्ट का रुख करना पड़ेगा। वे दो और नोटिस भेजने की तैयारी में हैं, जिसके बाद अगला कदम हाई कोर्ट में याचिका दायर करना होगा।
विधायक हसन मौलाना का बयान
इस विवाद पर कांग्रेस विधायक हसन मौलाना ने हस्तक्षेप करते हुए एक संतुलित बयान दिया। उन्होंने कहा,
“मैं ग्रामीणों को भरोसा दिलाता हूँ कि उन्हें बेदखल नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर वक्फ बोर्ड के पास जमीन से जुड़े सही दस्तावेज हैं, तो किराया देना ही होगा। एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ होता है।”
उनका यह बयान दोनों पक्षों को शांत करने का प्रयास माना जा रहा है, लेकिन इससे विवाद के कानूनी पक्ष की गंभीरता कम नहीं होती।
प्रशासन की भूमिका
स्थानीय निवासियों के अनुसार, वेल्लोर के जिला कलेक्टर ने अनौपचारिक रूप से ग्रामीणों को सलाह दी है कि जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक वे कोई किराया न दें। प्रशासन ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। इस चुप्पी ने ग्रामीणों की चिंता को और बढ़ा दिया है।
ग्रामीण बड़ी संख्या में कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा। उनका स्पष्ट कहना है कि वे इस जमीन को अपनी ज़िंदगी मानते हैं और किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से वे टूट सकते हैं।
सामाजिक और भावनात्मक पहलू
इस पूरे विवाद ने केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और भावनात्मक संकट को भी जन्म दिया है। जिन लोगों ने चार पीढ़ियों से एक ज़मीन को अपना घर, आशियाना और आजीविका का आधार बनाया है, उन्हें अचानक बेदखली का नोटिस देना किसी भी दृष्टिकोण से मानवीय नहीं लगता।
यह मुद्दा धार्मिक संस्थाओं की भूमि पर बसे गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। क्या सरकार या वक्फ बोर्ड ऐसे मामलों के लिए कोई स्थायी समाधान निकाल पाएगा? क्या ‘वक्फ’ के नाम पर आम लोगों को बेघर करना उचित है?
निष्कर्ष
तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में उठा यह वक्फ विवाद आने वाले दिनों में और भी बड़ा रूप ले सकता है। प्रशासन की निष्क्रियता, राजनीतिक दलों की सतर्कता और ग्रामीणों की भावनाएं – सभी इस मुद्दे को बेहद संवेदनशील बना रही हैं। इस बात पर अब सबकी निगाहें हैं कि क्या वक्फ बोर्ड अपनी बात को कानून में साबित कर पाता है या ग्रामीणों को उनका घर और हक़ मिल पाता है।