उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जनपद सिद्धार्थनगर के तहसील शोहरतगढ़ अंतर्गत ग्राम पंचायत धन्धरा स्थित राजस्व गाँव धन्धरी में दशकों पूर्व नवयुवक मंगल दल के नाम से दर्ज कीमती सार्वजनिक भूमि गाटा संख्या 132 पर अवैध रूप से मदरसा बनाए जाने का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। यह विवाद अब केवल एक भूमि विवाद नहीं रहा, बल्कि यह शासन-प्रशासन की निष्क्रियता, पक्षपात और स्थानीय राजनीति की मिलीभगत की एक बड़ी मिसाल बन चुका है।
विश्व सेवा संघ संवाददाता – योगेन्द्र जायसवाल, सिद्धार्थनगर
स्थान – ग्राम पंचायत धन्धरा, तहसील शोहरतगढ़, जनपद सिद्धार्थनगर
कैसे शुरू हुआ अवैध निर्माण?
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि समाजवादी पार्टी की सरकार के समय मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा नवयुवक मंगल दल की जमीन पर मदरसे का अवैध निर्माण शुरू किया गया। उस समय गाँव के दूसरे समुदायों ने इसका विरोध किया, लेकिन सत्ता संरक्षण और प्रशासन की चुप्पी ने विरोध को कुचल दिया। स्थानीय सपाई नेताओं के समर्थन से अवैध निर्माण बिना किसी प्रशासनिक बाधा के पूरा हो गया और आज यह मदरसा पूरी तरह कार्यरत भी है।
नवयुवक मंगल दल की जमीन: सार्वजनिक हित से निजी कब्जा तक
नवयुवक मंगल दल की जमीन सार्वजनिक गतिविधियों, खेलकूद और सामाजिक आयोजनों के लिए आरक्षित थी। यह न केवल युवाओं के विकास का केंद्र थी बल्कि ग्रामीण संस्कृति और एकता का प्रतीक भी थी। लेकिन जब यह जमीन राजनीतिक संरक्षण में एक धार्मिक संस्थान के नाम हो गई, तो गाँव के सामाजिक ताने-बाने पर भी असर पड़ा।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह कब्जा न सिर्फ नियमविरुद्ध है बल्कि सरकार के स्पष्ट निर्देशों की अवहेलना भी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कई बार यह निर्देश जारी किया है कि किसी भी सरकारी, सार्वजनिक या पंचायत की जमीन पर अवैध निर्माण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही होनी चाहिए, लेकिन यहाँ तो उल्टा प्रशासन ग्रामीणों से लिखित शिकायत की मांग कर रहा है।
धमकी और डर का माहौल
नाम न छापने की शर्त पर ग्रामीणों ने बताया कि मदरसा समिति के लोग खुलेआम धमकी दे रहे हैं – “यदि किसी ने शिकायत की और प्रशासन ने कार्यवाही की, तो चुप नहीं रहेंगे।” यह सीधा-सीधा कानून व्यवस्था को चुनौती है। सवाल यह है कि जब संविधान के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, तो आम ग्रामीण अपनी जमीन की रक्षा के लिए आवाज क्यों नहीं उठा पा रहे?
क्या शासन की भूमिका केवल वेतन लेने और फाइलों में आदेशों की खानापूर्ति करने तक सीमित है? क्या अब आम नागरिकों को ही अवैध कब्जाधारियों से लोहा लेने के लिए अकेला छोड़ दिया जाएगा?
प्रशासनिक चुप्पी और कानूनी विवशता?
इस मुद्दे पर जब उपजिलाधिकारी शोहरतगढ़ से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, “अभी हम कुछ नहीं कह सकते।” जिलाधिकारी सिद्धार्थनगर का बयान था – “लिखित शिकायत मिलने पर जांच और कार्यवाही की जाएगी।”
यह बयान अपने आप में बड़ा सवाल खड़ा करता है: जब शासनादेश और माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार सार्वजनिक/सरकारी भूमि से अवैध कब्जा हटाना प्रशासन की जिम्मेदारी है, तो फिर शिकायत की आवश्यकता ही क्यों? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही नहीं?
सरकार की नीति बनाम ज़मीनी हकीकत
योगी आदित्यनाथ सरकार भ्रष्टाचार, अतिक्रमण और अवैध निर्माण के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाने के लिए जानी जाती है। पूरे राज्य में बुलडोजर की कार्यवाही ने माफियाओं और कब्जाधारियों के होश उड़ा दिए हैं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी सियासी संरक्षण के चलते अवैध निर्माण धड़ल्ले से चल रहे हैं।
यह मामला केवल एक गाँव का नहीं, बल्कि एक राज्यव्यापी समस्या का प्रतीक है। सीमावर्ती क्षेत्रों में खासकर ऐसे अवैध धार्मिक संस्थान बना लिए जाते हैं, जहाँ शासन-प्रशासन की पहुँच कमजोर होती है। यह न केवल सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक है, बल्कि सामाजिक संतुलन को भी बिगाड़ता है।
ग्रामीणों की माँग: निष्पक्ष जाँच और त्वरित कार्यवाही
ग्रामीणों की माँग स्पष्ट है:
नवयुवक मंगल दल की जमीन को पुनः ग्राम समाज को सौंपा जाए
मदरसे की वैधता की जाँच कराई जाए
धमकी देने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो
और भविष्य में इस तरह के अवैध निर्माण को रोका जाए।
क्या होगा आगे?
अब देखना यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस गंभीर मुद्दे को संज्ञान में लेकर निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही करेगा, या फिर यह मुद्दा भी फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा?
यदि इस प्रकार के अवैध कब्जे यूँ ही चलते रहे, तो जनता के बीच सरकार की साख पर भी सवाल खड़े होंगे और कानून व्यवस्था पर आम जन का विश्वास डगमगाएगा। यह ज़रूरी है कि प्रशासन भयमुक्त होकर कानून के तहत कार्य करे और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाए।
निष्कर्ष:
धन्धरा गाँव में नवयुवक मंगल दल की जमीन पर बना अवैध मदरसा आज प्रशासन की परीक्षा बन गया है। यह मामला केवल एक अवैध कब्जे का नहीं, बल्कि शासन के आदेशों, न्यायपालिका के निर्देशों और जनता की उम्मीदों की कसौटी है। अब समय आ गया है कि प्रशासन “कार्यवाही” करके विश्वास बहाल करे।