Mahngai se janta trast

महंगाई एक ऐसा विषय बन चुका है, जिससे आज हर आम नागरिक प्रभावित है। चाहे वह शहर में रहने वाला नौकरीपेशा व्यक्ति हो या गांव में रहने वाला किसान, महंगाई की मार हर किसी की जेब पर सीधी पड़ रही है। बीते कुछ वर्षों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में जिस प्रकार वृद्धि हुई है, उससे लोगों की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी है। केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं और प्रयास किए हैं, परंतु सवाल यह है कि क्या ये योजनाएं महंगाई की इस आग पर पानी डाल पा रही हैं?

हर महीने की शुरुआत में जब वेतन आता है, तो कुछ ही दिनों में सारा पैसा बिजली, किराया, स्कूल की फीस, दवाइयां और राशन में खर्च हो जाता है। घर चलाना अब पहले जितना आसान नहीं रहा। टमाटर, दाल, दूध, गैस सिलेंडर और आटा जैसी चीज़ें आज सामान्य परिवार के बजट से बाहर होती जा रही हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार अब अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर कटौती करने को मजबूर हो रहा है।

केंद्र सरकार का दावा है कि उसने गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को राहत देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जिसके अंतर्गत गैस कनेक्शन दिए गए।
  • जनधन योजना, जिसमें खाते खोलकर सब्सिडी और सहायता सीधे भेजने का प्रयास हुआ।
  • गरीब कल्याण अन्न योजना, जिसके माध्यम से मुफ्त राशन दिया गया।
  • PM किसान योजना, जिससे सालाना ₹6000 की सहायता मिल रही है।

लेकिन इन योजनाओं का वास्तविक प्रभाव सीमित दिखाई देता है। उज्ज्वला योजना से मिले गैस कनेक्शन तो मिल गए, लेकिन सिलेंडर की कीमत ₹1100 के पार हो जाने के कारण कई महिलाएं दोबारा चूल्हा जलाने को मजबूर हो गईं। सब्सिडी भी समय पर नहीं आती और कुछ जगहों पर तो बंद ही कर दी गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी महंगाई से राहत देने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं:

  • वृद्धावस्था पेंशन योजना, जिसमें ₹800 राज्य और ₹200 केंद्र द्वारा जोड़कर कुल ₹1000 प्रति माह दिए जाते हैं।
  • दिव्यांग सहायता योजना, जिसके अंतर्गत ₹1200 प्रति माह सहायता दी जाती है।
  • गंभीर बीमारी सहायता योजना, जिसके अंतर्गत ₹1500 तक की मासिक सहायता है।
  • मुफ्त राशन योजना, जो कोविड काल में बहुत प्रभावी रही, लेकिन अब सीमित हो गई है।

हालांकि ये योजनाएं कागज़ों पर अच्छी लगती हैं, लेकिन जब ₹1000 की पेंशन में एक बुज़ुर्ग को दवाइयों, खाने और किराए की व्यवस्था करनी हो, तो यह राशि पर्याप्त नहीं प्रतीत होती।

जब “विश्व सेवा संघ” ने विभिन्न जिलों में आम लोगों से बातचीत की, तो कई बातें सामने आईं:

रामस्वरूप (कौशांबी) कहते हैं, “पेंशन मिलती है ₹1000, लेकिन दवाई का बिल ही ₹1500 होता है।”
सुनैना देवी (प्रतापगढ़) कहती हैं, “राशन तो मिलता है, लेकिन बाकी सब चीज़ें तो खुद ही खरीदनी पड़ती हैं, और उनकी कीमत बहुत ज़्यादा हो गई है।”
रवि (प्रयागराज), एक स्नातक बेरोजगार युवक कहते हैं, “महंगाई तो बढ़ रही है, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही। स्कूटी का पेट्रोल भराना भी अब मुश्किल हो गया है।”

इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि आम जनता सरकार की योजनाओं से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। राहत के नाम पर जो सहारा मिल रहा है, वह ज़मीनी स्तर पर पर्याप्त नहीं है।

आवश्यक वस्तुकीमत (2024)कीमत (2025)
गैस सिलेंडर₹950₹1120
टमाटर₹40/किलो₹80/किलो
गेहूं का आटा₹25/किलो₹35/किलो
दूध₹52/लीटर₹68/लीटर

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि रोजमर्रा की चीजों में 20% से 50% तक की महंगाई दर्ज की गई है, जो किसी भी मध्यम या निम्न आय वर्ग के लिए संकट का संकेत है।

विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे:

  • ईंधन और गैस पर टैक्स कम करना
  • राशन सब्सिडी को फिर से विस्तार देना
  • बेरोजगारी को कम करने के लिए छोटे उद्योगों को बढ़ावा
  • न्यूनतम पेंशन ₹2000 या उससे अधिक करना
  • आवश्यक वस्तुओं पर निगरानी और कीमत नियंत्रण

महंगाई सिर्फ आर्थिक आंकड़ों का विषय नहीं है, यह आम आदमी की दैनिक पीड़ा है। केंद्र और राज्य सरकारें प्रयासरत हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत को स्वीकार कर नई रणनीति बनानी होगी। योजनाएं तभी सफल होती हैं जब उनका लाभ सीधा और पर्याप्त रूप से अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। जनता को अब सिर्फ आश्वासन नहीं, ठोस राहत चाहिए।

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