by Suneel kc
भारत की स्वतंत्रता को 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। 15 अगस्त 1947 को जब देश ने अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति पाई थी, तब भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती थी – और आज भी भारत की लगभग 65% आबादी गांवों में निवास करती है। परंतु यह प्रश्न आज भी प्रासंगिक है – आज़ादी के 75 वर्षों में भारत के गांव कितने बदले? क्या ग्रामीण भारत का चेहरा बदला है, या केवल आंकड़ों की बाज़ीगरी है? इस लेख में हम स्वतंत्र भारत के 75 वर्षों में ग्रामीण भारत में हुए परिवर्तनों का समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, रोजगार, तकनीक, बुनियादी ढांचे, और महिलाओं की स्थिति जैसे अनेक पहलुओं से विश्लेषण करेंगे। आज़ादी के 75 साल
1. ग्रामीण भारत की सामाजिक स्थिति में बदलाव
स्वतंत्रता से पूर्व गांवों में जातिगत भेदभाव, बाल-विवाह, छुआछूत, स्त्री-शोषण और सामाजिक असमानता आम थी। हालांकि संविधान ने समानता और सामाजिक न्याय की गारंटी दी, लेकिन इन बुराइयों को मिटाने में समय लगा।
- सकारात्मक परिवर्तन:
- संविधान के अनुच्छेद 17 ने छुआछूत को गैर-कानूनी घोषित किया।
- पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण ने दलितों, महिलाओं और पिछड़ों को सत्ता में भागीदारी दी।
- सामाजिक जागरूकता अभियानों, एनजीओ और स्वयंसेवी संगठनों ने सामाजिक सुधारों को आगे बढ़ाया।
- अभी भी चुनौतियां:
- कई गांवों में जातिगत भेदभाव और ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं अब भी देखने को मिलती हैं।
- महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव धीमा है।
2. शिक्षा का स्तर: उपलब्धियां और समस्याएं
स्वतंत्रता के समय गांवों में साक्षरता दर बेहद कम थी। सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता दी।
- उपलब्धियां:
- आज लगभग हर गांव में प्राइमरी स्कूल उपलब्ध हैं।
- मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal) ने बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया।
- डिजिटल साक्षरता अभियान और ‘हर गांव डिजिटल’ योजनाओं ने तकनीकी साक्षरता को बढ़ावा दिया।
- चुनौतियां:
- शिक्षकों की कमी, घटिया अधोसंरचना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी आज भी एक बड़ी समस्या है।
- कई ग्रामीण स्कूलों में डिजिटल संसाधनों और विज्ञान-प्रयोगशालाओं का अभाव है।
3. स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति
स्वतंत्रता के बाद से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सरकार ने निवेश बढ़ाया है, लेकिन उपलब्धता और गुणवत्ता दोनों में अब भी बहुत सुधार की आवश्यकता है।
- सुधार:
- उप-स्वास्थ्य केंद्रों (Sub-centres) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) की स्थापना से बुनियादी स्वास्थ्य सेवा सुलभ हुई।
- मिशन इंद्रधनुष और आयुष्मान भारत योजनाओं ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा को बेहतर करने का प्रयास किया।
- चुनौतियां:
- डॉक्टरों और दवाइयों की भारी कमी।
- प्रसव, टीकाकरण और आपातकालीन सेवाएं अब भी कमजोर हैं।
- ग्रामीण महिलाओं की मातृ मृत्यु दर अभी भी शहरी महिलाओं से अधिक है।
4. कृषि और किसान: आधारभूत परिवर्तन और संकट
भारत की कृषि व्यवस्था आज़ादी के समय अत्यंत पिछड़ी थी। हरित क्रांति (Green Revolution), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सिंचाई योजनाओं और ऋण योजनाओं ने किसानों को आर्थिक संबल दिया।
- सकारात्मक पहल:
- हरित क्रांति ने गेहूं और चावल का उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया।
- किसानों को अब बीज, खाद, ट्रैक्टर जैसी सुविधाएं पहले से अधिक उपलब्ध हैं।
- PM-KISAN, फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाएं लागू की गईं।
- आज की सच्चाई:
- किसान आत्महत्याओं की संख्या चिंताजनक है।
- बढ़ती लागत, घटती आय, कर्ज़, जलवायु परिवर्तन और मंडी की असमानताएं किसानों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं।
- भूमिहीन और सीमांत किसानों की स्थिति अभी भी दयनीय है।
5. ग्रामीण रोजगार और पलायन
स्वतंत्रता के बाद से रोजगार के अवसरों में थोड़ा विस्तार हुआ, लेकिन गांवों में स्थायी और सुरक्षित रोजगार की कमी अब भी पलायन को बढ़ावा देती है।
- उपलब्धियां:
- मनरेगा (MGNREGA) योजना ने ग्रामीण स्तर पर आजीविका उपलब्ध कराने का प्रयास किया।
- ग्रामीण उद्यमिता और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) ने महिलाओं और युवाओं को काम से जोड़ा।
- समस्याएं:
- खेती पर निर्भरता बहुत अधिक है जबकि उसमें आय कम है।
- गांवों से शहरों की ओर पलायन आज भी तेज़ी से जारी है, विशेषकर युवा वर्ग का।
6. तकनीकी और डिजिटल बदलाव
डिजिटल इंडिया के साथ गांवों में तकनीकी क्रांति की शुरुआत हुई।
- बदलाव के संकेत:
- स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच गांवों तक बढ़ी है।
- डिजिटलीकरण से बैंकिंग, ई-गवर्नेंस, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं आसान हुई हैं।
- अब भी दूरी:
- इंटरनेट की स्पीड, डिजिटल साक्षरता और बिजली की अनियमितता गांवों की डिजिटल ग्रोथ को सीमित करती हैं।
- महिलाओं और बुजुर्गों के लिए तकनीक अभी भी दुरूह है।
7. बुनियादी ढांचा: सड़क, बिजली, पानी और आवास
स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है – गांवों में बुनियादी ढांचे का विस्तार।
- सरकारी योजनाओं का असर:
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) ने लाखों गांवों को सड़कों से जोड़ा।
- सौभाग्य योजना और उज्ज्वला योजना से बिजली और गैस सिलेंडर पहुंचे।
- जल जीवन मिशन के तहत नल से जल की सुविधा अब गांवों में सुलभ हो रही है।
- ग्रामीण आवास योजना (PMAY-Gramin) से लाखों गरीबों को पक्के घर मिले।
- अभी भी समस्याएं:
- कई गांवों में सड़कें अब भी कच्ची हैं।
- गर्मियों में जल संकट एक आम समस्या है।
- शौचालयों के निर्माण के बाद भी खुले में शौच अब भी पूरी तरह बंद नहीं हुआ।
8. महिलाओं की स्थिति और सशक्तिकरण
गांवों में महिलाओं की स्थिति में पिछले 75 वर्षों में बड़ा परिवर्तन आया है, पर यह परिवर्तन पूर्ण नहीं है।
- सशक्तिकरण के संकेत:
- बालिकाओं की शिक्षा दर में बढ़ोतरी हुई है।
- पंचायतों में 33% आरक्षण से महिलाएं नेतृत्व में आईं।
- स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया है।
- चुनौतियां:
- घरेलू हिंसा, बाल विवाह और दहेज जैसी कुरीतियां अब भी विद्यमान हैं।
- काम के बदले मजदूरी में लैंगिक असमानता आज भी एक वास्तविकता है।
9. पंचायती राज और ग्रामीण स्वशासन
1992 में 73वां संविधान संशोधन ग्रामीण भारत में लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक लाने में मील का पत्थर साबित हुआ।
- बदलाव:
- गांवों में ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, और जिला पंचायतों की स्थापना।
- योजना निर्माण और क्रियान्वयन में गांवों की भागीदारी बढ़ी।
- वास्तविक स्थिति:
- कई जगह पंचायतें अब भी अधिकारियों पर निर्भर हैं।
- भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और महिलाओं को नाम मात्र का प्रतिनिधि बनाए रखना एक समस्या है।
10. संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का समन्वय
गांवों में आज भी लोकगीत, नृत्य, मेलों और त्योहारों के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत जीवित है, लेकिन आधुनिकता की हवा से ग्रामीण जीवनशैली में बदलाव भी आ रहा है।
- सकारात्मक बदलाव:
- गांवों के युवाओं में फिल्म, फैशन, सोशल मीडिया और आधुनिक सोच का प्रभाव दिखता है।
- पौराणिकता और प्रगतिशीलता का एक संतुलन बन रहा है।
- संघर्ष:
- पारंपरिक मूल्यों का ह्रास और संयुक्त परिवार व्यवस्था का विघटन बढ़ रहा है।
निष्कर्ष: गांवों की वर्तमान स्थिति और भविष्य की राह
भारत के गांवों ने पिछले 75 वर्षों में कई मायनों में विकास की लंबी यात्रा तय की है। जहां पहले गांवों को अंधकार, गरीबी, और अशिक्षा से जोड़ा जाता था, आज वहां बिजली, स्कूल, मोबाइल, और सड़कों की रौनक दिखाई देती है। परंतु यह सफर अधूरा है।
मुख्य चुनौतियां जो अब भी हैं:
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी
- किसानों की अस्थिर आर्थिक स्थिति
- ग्रामीण रोजगार और पलायन की समस्या
- भ्रष्टाचार और योजना क्रियान्वयन की कमजोरी
- सामाजिक कुरीतियों का बने रहना
आगे की दिशा:
- ग्रामीण युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट और स्वरोज़गार पर ज़ोर
- ग्राम पंचायतों को अधिक संसाधन और स्वायत्तता देना
- जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक का प्रसार
- शिक्षा और स्वास्थ्य में निजी और सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाना
- डिजिटल साक्षरता को घर-घर तक ले जाना
अंतिम बात:
गांव भारत की आत्मा हैं, और जब तक गांव नहीं बदलेंगे, भारत पूरी तरह विकसित नहीं हो सकता। स्वतंत्रता के 75 वर्षों में गांवों ने कई मोर्चों पर प्रगति की है, परंतु “विकसित भारत” के सपने को साकार करने के लिए गांवों का वास्तविक और समावेशी विकास अनिवार्य है।