सुनील केसी, संपादक, विश्व सेवा संघ
उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जनपद सिद्धार्थनगर बौद्ध काल से लेकर आधुनिक भारत तक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व का केंद्र रहा है। भगवान बुद्ध की स्मृतियों से जुड़ा यह क्षेत्र एक समय में चेतना और शिक्षा का प्रतीक था। परंतु आज यही जनपद विकास के मानचित्र पर उपेक्षित खड़ा दिखाई देता है। सिद्धार्थनगर की चुप्पी
जनता ने हर बार विश्वास किया, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहे। अब यह चुप्पी आक्रोश में बदल रही है। यह लेख जिले की मूलभूत समस्याओं की गहराई में जाकर उनका विश्लेषण करता है।
📚 1. शिक्षा : अधूरी प्रणाली, खोता भविष्य
स्थिति:
सिद्धार्थनगर में उच्च शिक्षा का एकमात्र प्रमुख केंद्र सिद्धार्थ विश्वविद्यालय है, जिसकी अकादमिक गुणवत्ता और प्रशासनिक पारदर्शिता पर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं। शिक्षकों की कमी, समय से परीक्षा परिणाम न आना और छात्रों की मूलभूत सुविधाओं का अभाव शिक्षा को बोझ बना रहा है।
वास्तविकता:
पूरे जिले में एक भी राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक संस्थान या मेडिकल कॉलेज के अलावा टेक्निकल एजुकेशन का विकल्प नहीं है। NIOS और स्किल डेवलपमेंट जैसी वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली की लगभग अनुपस्थिति ने बेरोजगार युवाओं की संख्या को और बढ़ा दिया है। सरकारी स्कूलों की हालत बदतर है – शौचालय, पीने का पानी, स्मार्ट क्लास या प्रयोगशाला की व्यवस्था लगभग नगण्य है।
समाधान:
हर ब्लॉक में टेक्निकल कॉलेज की स्थापना।
योग्य शिक्षकों की पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया।
स्कूलों में ICT क्लास, लाइब्रेरी, खेल और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
प्रत्येक स्कूल को निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर रेटिंग दी जाए।
🏥 2. स्वास्थ्य सेवाएं : निजी अस्पतालों की लूट
स्थिति:
माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज, जिले में चिकित्सा के नाम पर एक अधूरी इमारत जैसा प्रतीत होता है। न पर्याप्त डॉक्टर, न ICU, न आपातकालीन सेवाएं। जिला अस्पताल का मेडिकल कॉलेज में विलय, बिना सोच-समझ के निर्णय रहा, जिससे आमजन को परेशानी झेलनी पड़ी।
चिंताजनक पहलू:
शहर और कस्बों में चल रहे दर्जनों निजी अस्पताल बिना लाइसेंस, बिना पंजीकरण और बिना योग्य स्टाफ के चल रहे हैं। आम प्रसव को ऑपरेशन में बदला जा रहा है ताकि फीस वसूली की जा सके। चिकित्सा अब सेवा नहीं, कारोबार बन गया है।
समाधान:
मेडिकल कॉलेज में फुलफंक्शनल इमरजेंसी यूनिट और विशेषज्ञों की तैनाती।
जिला अस्पताल को पुनः स्वतंत्र रूप से चालू करना।
CMHO के नेतृत्व में सभी निजी क्लिनिक और अस्पतालों का औचक निरीक्षण।
मेडिकल एथिक्स का पालन सुनिश्चित कराने के लिए स्थायी मेडिकल निगरानी समिति का गठन।
🌾 3. कृषि : समर्थन मूल्य की प्रतीक्षा
स्थिति:
कृषि, जिले की रीढ़ है। लेकिन आज यही किसान हताश हैं। धान, गेहूं जैसी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद न के बराबर होती है। व्यापारियों के हाथों किसानों को अपनी मेहनत कौड़ियों के दाम बेचनी पड़ती है।
गंभीर समस्या:
फसल बीमा योजना कागजों तक सिमटी है। अधिकांश किसानों को मुआवज़ा नहीं मिलता।
कोई कोल्ड स्टोरेज या फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से उत्पाद बर्बाद हो जाते हैं।
मंडी समितियां निष्क्रिय हैं, न नीलामी होती है, न किसान को बाजार मूल्य मिलता है।
समाधान:
प्रत्येक ब्लॉक में एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) की स्थापना।
सरकार के डिजिटल पोर्टल के माध्यम से सीधी खरीद।
छोटे किसान स्टार्टअप को टैक्स छूट और प्रशिक्षण।
किसानों को डिजिटल रूप से जोड़ा जाए ताकि वे सीधे मंडियों और कंपनियों से जुड़ सकें।
🔌 4. बिजली–सड़क : अंधेरा और गड्ढों का साम्राज्य
जमीनी हकीकत:
जिले में 24 घंटे बिजली की बात एक सपना बन गई है। बार-बार फ्यूज उड़ना, ट्रांसफॉर्मर जलना और घटिया वायरिंग ने बिजली व्यवस्था को अराजक बना दिया है।
सड़कें:
ग्रामीण सड़कों की हालत अत्यंत दयनीय है। शहर से जुड़ने वाले लिंक रोड टूटी हुई हैं। मानसून के दौरान गांवों से संपर्क टूट जाता है।
समाधान:
बिजली फीडरों का डिजिटलीकरण हो और खराब ट्रांसफॉर्मर 72 घंटे में बदले जाएं।
हर पंचायत तक ऑल वेदर रोड योजना के तहत पक्की सड़क सुनिश्चित की जाए।
सोलर ग्रिड और रूफटॉप प्लांट्स को ग्राम पंचायत स्तर पर अनिवार्य किया जाए।
🌳 5. वृक्षारोपण : फाइलों में हरियाली, धरातल पर सूखा
सच्चाई:
हर साल लाखों पौधे लगाने का दावा होता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 80 प्रतिशत पौधे सूख जाते हैं। देखरेख की कोई जवाबदेही नहीं है।
समाधान:
हर पौधे की जिम्मेदारी स्कूल, स्वयंसेवी संस्था या ग्राम प्रधान को दी जाए।
डिजिटल मैपिंग के जरिए पौधारोपण ट्रैकिंग।
वृक्षारोपण को CSR योजना से जोड़ा जाए।
🏞 6. नदी कटान : हर साल दोहराया जाने वाला दुःख
स्थायी पीड़ा:
राप्ती और बूढ़ी राप्ती हर साल बाढ़ और कटान से हजारों बीघा उपजाऊ जमीन निगल जाती हैं। न कोई तटबंध, न कोई दीर्घकालिक योजना।
समाधान:
नदी किनारे स्टोन पिचिंग और ग्रीन बैरियर की स्थायी योजना।
बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू की जाए जिसमें SMS अलर्ट भी शामिल हों।
कटान प्रभावितों के लिए विशेष पुनर्वास पैकेज।
🛐 7. धार्मिक पर्यटन : ऐतिहासिक उपेक्षा
उपेक्षित धरोहर:
भगवान बुद्ध की स्मृतियों से जुड़ी यह भूमि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र बन सकती है, लेकिन आज यहां न कोई ध्यान केंद्र है, न धर्मशाला, न शोध संस्थान।
समाधान:
केंद्र और राज्य मिलकर सिद्धार्थनगर को बौद्ध पर्यटन सर्किट में विकसित करें।
लुंबिनी-बस्ती-सिद्धार्थनगर को जोड़कर इंटरनेशनल पिलग्रिम कॉरिडोर बनाया जाए।
स्थानीय गाइड, होटल व्यवसाय, हस्तशिल्प को पर्यटन से जोड़ा जाए।
💼 8. रोजगार और पलायन : खाली हाथ युवा
निराशाजनक स्थिति:
युवाओं के पास रोज़गार का कोई ठोस आधार नहीं है। न कोई बड़ा उद्योग, न MSME यूनिट। सरकारी भर्तियों में अनियमितता और घोटाले भरोसे को तोड़ चुके हैं।
समाधान:
प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर ITI और स्किल डेवेलपमेंट सेंटर की स्थापना।
जिला स्तर पर ऑनलाइन रोजगार पोर्टल जो कंपनियों से सीधे जोड़े।
PMEGP, Startup India, MSME योजनाएं जमीनी स्तर तक लागू की जाएं।
निष्कर्ष : चुप्पी अब विद्रोह का संकेत है
सिद्धार्थनगर की जनता अब केवल वादों से नहीं, ठोस कार्यों से संतुष्ट होगी। अगर योजनाएं कागजों से निकलकर जमीन पर नहीं आईं, तो अगला निर्णय जनता स्वयं लेगी। यही लोकतंत्र की शक्ति है।
📩 सुनील केसी
संपादक, विश्व सेवा संघ
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