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शोहरतगढ़ (सिद्धार्थनगर), 03 मई 2025:
तहसील शोहरतगढ़ के ग्राम पंचायत पिपरा में स्थित गाटा संख्या 102, रकबा 0.110 हेक्टेयर भूमि, जो राजस्व अभिलेखों में खलिहान के रूप में दर्ज है, पर लंबे समय से इस्लामिया इस्लामदुल मुस्लमीन मदरसा के नाम से एक अवैध निर्माण किया गया था। यह भूमि सार्वजनिक उपयोग हेतु आरक्षित होने के बावजूद निजी स्वार्थों के लिए अतिक्रमित की गई थी। प्रशासन ने इस अवैध अतिक्रमण को चिह्नित कर उचित प्रक्रिया के तहत आज उसे हटवा दिया।

राजस्व विभाग की सतर्कता से शुरू हुई कार्रवाई
पिपरा ग्राम स्थित खलिहान भूमि पर किए गए अतिक्रमण की सूचना मिलने के पश्चात तहसील प्रशासन ने तत्काल संज्ञान लिया। राजस्व अभिलेखों की जांच में पुष्टि हुई कि गाटा संख्या 102 पूरी तरह से सरकारी जमीन है और खलिहान के रूप में दर्ज है। परंतु, इस भूमि पर एक मदरसा निर्माण कर वर्षों से उसका उपयोग निजी संस्थान के रूप में किया जा रहा था।

तत्पश्चात, राजस्व विभाग द्वारा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 67 के अंतर्गत अतिक्रमण के विरुद्ध विधिक प्रक्रिया प्रारंभ की गई।

नोटिस देकर स्वयं हटाने का दिया गया था अवसर
राजस्व विभाग द्वारा दिनांक 11 अप्रैल 2025 को संबंधित अतिक्रमणकर्ता को नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि वे 26 अप्रैल 2025 तक स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाकर भूमि को प्रशासन को सौंपें। प्रशासन ने उक्त संस्था को अपना पक्ष रखने का भी पूरा अवसर प्रदान किया, ताकि निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित हो सके।

लेकिन निर्धारित तिथि तक अतिक्रमण नहीं हटाया गया और निर्देशों का पालन नहीं किया गया। ऐसे में प्रशासन ने सख्त रवैया अपनाते हुए 03 मई 2025 को आवश्यक बल प्रयोग करते हुए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की।

राजस्व व पुलिस विभाग की संयुक्त कार्रवाई
उक्त कार्रवाई तहसील शोहरतगढ़ के उप जिलाधिकारी के निर्देशन में की गई। मौके पर राजस्व विभाग की टीम के साथ स्थानीय पुलिस बल की उपस्थिति में अतिक्रमण हटाया गया। किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा बल की तैनाती की गई थी।

कार्यवाही के दौरान स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि यह कार्य शासन की “सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने” की नीति के तहत किया गया है और भविष्य में भी किसी प्रकार का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सीमा क्षेत्र में अवैध निर्माण, सुरक्षा दृष्टिकोण से भी था गंभीर मामला
यह मदरसा भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित है। ऐसे में, संवेदनशील सीमाई क्षेत्र में सरकारी जमीन पर बिना अनुमति के कोई भी निर्माण कार्य सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत गंभीर मामला माना जाता है।

प्रशासन का कहना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के अज्ञात या अवैध संस्थानों की मौजूदगी भविष्य में कानून व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। यही कारण है कि शासन के निर्देशानुसार सीमाई क्षेत्रों में भूमि के उपयोग पर विशेष निगरानी रखी जा रही है।

प्रशासन की सख्ती का दिखा असर
अवैध मदरसे को हटाए जाने की इस कार्रवाई ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि शासन और प्रशासन अब सरकारी जमीन पर किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को सहन नहीं करेगा। इस मामले ने न केवल प्रशासन की तत्परता को दर्शाया है, बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि अगर सूचना सही और समय पर मिले, तो कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है।

उप जिलाधिकारी शोहरतगढ़ ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार तहसील क्षेत्र की सभी सरकारी भूमियों की समीक्षा की जा रही है। कहीं भी अगर अतिक्रमण पाया गया, तो तत्काल विधिक कार्यवाही की जाएगी।

स्थानीय जनता ने किया स्वागत
इस कार्रवाई की स्थानीय ग्रामीणों ने सराहना की है। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से सार्वजनिक खलिहान की भूमि पर अतिक्रमण के कारण गांव में सामुदायिक गतिविधियों के लिए स्थान की कमी थी। अब इस भूमि का उपयोग ग्रामवासियों के हित में हो सकेगा।

कई ग्रामीणों ने प्रशासन को आश्वस्त किया कि वे सरकारी भूमि की सुरक्षा हेतु सहयोग करते रहेंगे और यदि भविष्य में कोई अतिक्रमण होता है, तो तत्काल जानकारी देंगे।

कानूनी रूप से सुदृढ़ कार्रवाई
राजस्व विभाग की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि यह कार्रवाई पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए की गई है। धारा 67 के अंतर्गत नोटिस, सुनवाई, समयसीमा और अवसर देने के बाद ही अतिक्रमण हटाया गया है।

प्रशासन द्वारा इस भूमि पर “सरकारी” पट्टे की सूचना पट्टिका भी लगाई गई है ताकि भविष्य में पुनः कोई अतिक्रमण न हो।

निष्कर्ष:

पिपरा गांव की यह कार्रवाई एक मिसाल है कि जब प्रशासन और कानून मिलकर कार्य करते हैं, तो वर्षों से लंबित समस्याओं का समाधान संभव है। शासन की मंशा साफ है—सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह घटना न केवल अन्य अतिक्रमणकारियों के लिए चेतावनी है, बल्कि आम नागरिकों के लिए एक आश्वासन भी है कि सार्वजनिक संसाधनों की सुरक्षा अब प्राथमिकता में है।

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