छोटा पहल बड़ा बदलाव
मेरा गाँव मेरी जिम्मेदारी
विश्व सेवा संघ, संवाददाता
सिद्धार्थनगर। उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में स्थित सिद्धार्थनगर नाम का एक जिला है। जो 1989 में बनाया गया था और इसका नाम भगवान बुद्ध के नाम पर रखा गया है, बताया जाता है की भगवान बुद्ध का नाम बचपन में सिद्धार्थ था उन्ही के नाम पर इस जिले का नामकरण करते हुए जनपद का नाम सिद्धार्थ नगर पड़ा 2,751 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ इस जिले की सीमाएं नेपाल देश के साथ साथ उत्तर प्रदेश के बलरामपुर, बस्ती, संतकबीर नगर और महराजगंज जिलों सहित गोरखपुर से लगती हैं । जनपद का साक्षरता दर लगभग 67% (2011 की जनगणना के अनुसार) है, जनपद में एक सिद्धार्थ विश्वविद्यालय व कई सरकारी और निजी संस्थान, कॉलेज और स्कूल स्थापित हैं। प्राचीन काल में, यह शहर कपिलवस्तु राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जहां बुद्ध ने अपना जीवन व्यतीत किया था। बुद्ध के जन्म से पहले, उनके पिता शुद्धोदन ने इस शहर में एक महल बनवाया था, जहां भगवान बुद्ध ने अपना बचपन बिताया था। अगवान बुद्ध की जीवन कहानी के अनुसार, उन्होंने अपने 29वें वर्ष में अपने परिवार और राज्य को छोड़ दिया और आत्म-ज्ञान की खोज में निकल पड़े।
उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की और अंततः बोधगया में बुद्धत्व प्राप्त किया। आजकल, सिद्धार्थ नगर एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है, जहां लोग भगवान बुद्ध की जीवन कहानी को जानने और उनकी शिक्षाओं को समझने के लिए आते हैं। जनपद मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर विकास खण्ड जोगिया में एक करौंदा मसीना नामक ग्राम पंचायत स्थित है जिसमें दो राजस्व गाँव शामिल है। यहाँ पर कृषी और मजदूरी ही मुख्य आजीविका का साधन है। शिक्षा का स्तर कम होने के कारण यहाँ पर बच्चों के पढ़ाई में भी लोग ज्यादा रुचि नहीं लेते है साथ ही प्रायः यह देखने को मिलता रहा है की स्कूल समय के बाद बच्चे घूमते हुए नुक्कड़ या चौराहों पर दिख जाते हैं। ग्राम पंचायत के प्रधान सरपंच काफी पढे लिखे और जागरुक हैं जब इनके द्वारा लोगों से बात की गई तो लोगों ने बिभिन्न प्रकार की समस्याए बताए जिसमें मुख्य रूप से यह जानकारी मिलती है की लोग पढ़ना तो चाहते हैं वहीं कुछ बच्चे नीट और जेईई की तैयारी भी करना चाहते हैं लेकिन धनाभाव के कारण पढ़ाई और तैयारी में बाधा उत्पन्न हो रही है। फिर क्या था असली समस्या की जड़ का पता चलते ही ग्राम प्रधान प्रभुदयाल ने यह ठान लिया था की हमें कुछ तो करना है लेकिन रास्ता क्या होगा इसी उधेड़ नून में पड़े विचार ही कर रहे थे की एक दिन पिरामल फाउंडेशन के लोगों से इस मुद्दे पर बात हो गई । कहते हैं जहा चाह है, वहीं राह है। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए प्रधान जी ने वह कर दिखाया जिसका परिकल्पना कभी खयालों में किया गया था। हुआ यू था की वेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के जिला समन्वयक बालिका, श्री सुरेन्द्र जी द्वारा पिरामल फाउंडेशन के टीम से यह विचार व्यक्त किया गया था की किसी गाँव में एक पुस्तकालय खोला जाए जिससे वहाँ के बच्चे आगे की पढाई कर सके और पढाई को रुचिकर बना सकें । अब बारी हमारी थी ग्राम प्रधान प्रभुदयाल और सुरेन्द्र जी से मुलाकात करवाई गई करौंदा मसीना गाँव के पंचायत भवन में पुस्तकालय खोलने का पटकथा लिखी गई और शुरू हुआ नए पुस्तकालय खोलने की कवायद सबसे पहले ग्राम पंचायत फेसलिटेशन टीम की एक बैठक की गई और यह निर्णय लिया गया की नो काष्ट या लो काष्ट गतिविधि के अन्तर्गत पुस्तकालय खोला जाए क्योंकि यह युवा पीढ़ी के भविष्य की बात है।
इसके सम्बन्ध में मुख्य विकास अधिकारी से चर्चा की गई ग्राम पंचायत सचिव से मदद ली गई और स्थानीयसहयोग लेते हुए प्रचार प्रसार किया जाने लगा, प्रधान जी द्वारा किताबें दान करने के लिए पत्र लिख कर अपील किया गया खुद प्रधान जी ने कुछ खर्च कर के पंचायत भवन का रंगाई, पुताई करवाया एल.एस.डी.जी. के थीम को प्रमोट करते हुए स्वास्थ्य ग्राम पंचायत और बाल हितैसी ग्राम पंचायत के अंर्तगत हो रहे कार्यों को प्रदर्शित किया गया रैंक, कुर्सी, मेज, पीने का पानी, हवा के लिए पंखे, विजली, शौचालय आदि की उत्तम व्यवस्था सचिव और प्रधान के सहयोग से पूर्ण हुआ उधर अपील का असर ऐसा हुआ की किताबें दान में मिलने लगी इसी पंचायत के कार्यरत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी शारदा रावत ने नीट और जेईई की बहुत सारी किताबें दान में दि और अंततः तीन सितंबर को पुस्तकालय का शुभारम्भ खण्ड विकास अधिकारी के उपस्थिति में मुख्य विकास अधिकारी श्री जयेंद्र कुमार (आई.ए.एस) दवरा किया गया जिसका साक्षी बना पूरा ग्राम पंचायत । शुभारम्भ इतना भब्य रूप से हुआ की इसका संदेश पूरे जनपद में गया और इसका संजान स्वयं जिला के मुखिया जिला अधिकारी ने लिया और जनपद में 700 और पंचायत भवन पर पुस्तकालय खोलवाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया। पुस्तकालय शुभारंभ के समय के साथ जिला पंचायती राज अधिकारी ने बताया की करौदा मसीना में पुस्तकालय खुलने का परिणाम बहुत अच्छा देखने और सुनने को मिल रहा है राज्य स्तर पर प्रस्ताव गया है निर्देश मिलते ही 700 पंचायत भवन में पुस्तकालय खोला जाएगा । पुस्तकालय खुलने के कुछ दिनों बाद ही ग्राम प्रधान से बात की गई तो प्रधान प्रभुदयाल ने खुशी जाहीर करते हुए पिरामल टीम को बधाई और धन्यबाद देते हुए उन सभी को धन्यबाद दिया जिन्होंने इसमें पूरे मनोयोग से इस गतिविधि में योगदान दिया वहीं प्रभुदयाल जी अपने विचार को व्यक्त करते हुए बताते हैं की मुझे परम आनंद की विचार व्यक्त करते प्रधान प्रभुदयाल यादव प्राप्ती हो रही है की एक छोटे प्रयास से इतना बड़ा बदलाव हो रहा है अभी पुस्तकालय पर छोटे बच्चों से ले कर तैयारी करने वाले बच्चों तक की व्यवस्था की गई है लगभग 10 से 12 युवा लगातार पढ़ने आ रहे हैं आगे सैकड़ों लोग यहाँ पढने आएंगे मैं उम्मीद करता हूँ अगल बगल के ग्राम पंचायत के लोग भी नवाचार करेंगें मैं हर संभव उनके गाँव में भी सहयोग करने को तैयार बैठा हूँ। आगे और भी मैं अपने पंचायत के लिए स्वास्थ्य पंचायत और बाल हितैसी पंचायत के लिए कार्य करता रहूँगा। क्योंकि मेरा मानना है की जब शिक्षित पंचायत होगा तब विकसित पंचायत होगा और तभी विकसित भारत होगा। इस लिए मेरा नारा है ‘मेरा गाँव मेरी जिम्मेदारी। उक्त जानकारी पिरामल फाउंडेशन के सत्येंद्र सिंह ने विश्व सेवा संघ संवाददाता को दी।