
करोड़ों खर्च, 90% सामुदायिक शौचालय बंद – ग्रामीण खुले में शौच को मजबूर
विश्व सेवा संघ संवाददाता
जय प्रकाश त्रिपाठी
सिद्धार्थनगर।
स्वच्छ भारत मिशन की हकीकत जानने जब संवाददाता ने जिले के इटवा, भनवापुर, खुनियाव समेत सभी 14 विकासखंडों का दौरा किया तो तस्वीर बेहद शर्मनाक सामने आई। गांव-गांव में सामुदायिक शौचालय तो बने हैं, लेकिन 90% शौचालय तालेबंद पड़े मिले।
शौचालय बने, पर खुलते नहीं
ग्रामीणों ने बताया कि सामुदायिक शौचालय सिर्फ दिखावे के लिए बने हैं। न तो समय से खुलते हैं, न कोई देखरेख करने वाला है। कई शौचालयों में पानी की टंकी या नल तक नहीं लगे, कहीं सीटें और वॉशबेसिन टूटकर नष्ट हो चुके हैं। कई जगह भवन खंडहर का रूप ले चुके हैं। तो कई जगह मोटर लगे हैं तो विद्युतीकरण नहीं
प्रवेश मार्गों पर गंदगी-
शौचालय न खुलने से लोग मजबूरन खुले में शौच कर रहे हैं। नतीजा यह कि अधिकांश ग्राम पंचायतों के प्रवेश मार्ग और नहर पट्टियों पर गंदगी का अंबार लगा है। दुर्गंध इतनी कि लोगों का सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। सड़क किनारे बिकने वाला खाद पदार्थ दुषित हो रहा है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
हर माह 9000 रुपये खर्च – लेकिन नतीजा शून्य
प्रत्येक सामुदायिक शौचालय पर एक केयरटेकर तैनात है, जिसे ₹6000 मानदेय और ₹3000 साफ-सफाई मद मिलते हैं। यानी हर माह ₹9000 खर्च। इसके बावजूद शौचालय कभी खुलते ही नहीं। ग्रामीणों का आरोप है कि कई बार केयरटेकर को 6 महीने से सालभर तक भुगतान रोक दिया जाता है, फिर अधिकारियों और पंचायतों द्वारा बंदरबांट कर रकम दिखा दी जाती है।
जिम्मेदारों का बहाना-
जब भी जांच-पड़ताल होती है तो सचिव और जिम्मेदार अधिकारी हर बार यही कहते हैं – “मेंटेनेंस कार्य चल रहा है।” ग्रामीणों का कहना है कि यह बहाना वर्षों से चल रहा है और हकीकत यह है कि शौचालय सालों से बंद पड़े हैं।
बहन-बेटियों की सुरक्षा पर संकट
सामुदायिक शौचालय बंद होने का सबसे बड़ा खामियाजा गांव की महिलाओं और बेटियों को भुगतना पड़ रहा है। उन्हें खुले में शौच करने जाना पड़ता है, जिससे न सिर्फ उनकी इज्जत और सुरक्षा खतरे में है बल्कि बीमारियों का भी खतरा लगातार बढ़ रहा है।
जिम्मेदारी किसकी?
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार और प्रशासन के साथ-साथ ग्राम पंचायत और ग्रामवासी भी जिम्मेदार हैं। शौचालयों का न खुलना केवल सरकारी लापरवाही नहीं, बल्कि जनता की चुप्पी भी है। अगर शौचालय बंद हैं तो इसकी सूचना समय पर ब्लॉक स्तर तक दी जानी चाहिए।
ग्रामीणों की मांग
ग्रामीणों ने जिला अधिकारी और संबंधित विभागों से मांग की है कि:
जिलेभर के सभी सामुदायिक शौचालयों की तुरंत जांच कराई जाए।
तालेबंद शौचालयों को चालू कराया जाए।
मानदेय व रखरखाव मद में हो रहे भ्रष्टाचार की पारदर्शी जांच हो।
दोषी सचिवों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो।
बड़ा सवाल
करोड़ों खर्च के बाद भी शौचालय बंद क्यों?
95% शौचालय के केयरटेकर को मानदेय क्यों दिया जा रहा है?
क्या बहन-बेटियों की इज्जत और सुरक्षा इतनी सस्ती है?
अब जिले की जनता पूछ रही है – “ताले में कैद स्वच्छता मिशन कब खुलेगा?”